बचपन की बातें!
सुनाओ कोई फिर से बचपन की बातें,
कोई लब पे लाओ लड़कपन की बातें।
दरख्तों की छाँव में होती थीं बातें,
बड़े ही मजे से चलती थीं साँसें।
दुआएँ बड़ों की मिलती थी सबको,
नाजो-अदा न उठानी थी हमको।
कागज की कश्ती वो बारिश का पानी,
आओ करें उस जमाने की बातें।
कोई लब पे लाओ लड़कपन की बातें,
सुनाओ कोई फिर से बचपन की बातें।
शोहरत ये दौलत मेरी तू ले लो,
आँचल वो माँ का फिर से ओढ़ा दो।
नई थी जमीं वो, नया आसमां था,
गुम हो चुके उन लम्हों की बातें।
कोई लब पे लाओ लड़कपन की बातें,
सुनाओ कोई फिर से बचपन की बातें।
इमली की चटनी वो बेसन की रोटी,
माँयें सभी में थी संस्कार बोतीं।
आम के टिकोरे,हाथों में सुतुही,
नमक वो लगाकर खाने की बातें।
कोई लब पे लाओ लड़कपन की बातें,
सुनाओ कोई फिर से बचपन की बातें।
रामकेश एम.यादव (कवि,साहित्यकार),मुंबई
Muskan khan
16-Feb-2023 09:31 PM
Nice
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Gunjan Kamal
16-Feb-2023 08:44 AM
बहुत खूब
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Abhinav ji
16-Feb-2023 07:55 AM
Very nice 👍😊
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